Wednesday, 5 July 2017

क्या आदिवासी हिन्दू बन गए हैं ?

  1. पिछले कई महीनों से कई बार विशेष जोर देकर कहा जा रहा है कि आदिवासियों हिन्दू बन गए हैं। लेकिन वे कैसे हिन्दू बन गए हैं ??? इसके लिए जनगणना सहित हिंदुओं के पर्व त्यौहारों में आदिवासियों के भाग लेने सहित कई कारणों को सरसरी रूप से संदर्भित किया जाता है लेकिन इसे विस्तारपूर्क रेखांकित करने और विश्लेषणात्मक रूप से जानकारी देने तथा ऐसी स्थिति या समस्या के लिए सुधारात्मक उपचार, तरीका और उपाय (Corrective Remedial steps to arrest the problems) सुझाने के बदले आरोप लगाने वाले स्पष्टीकरण देने की जिम्मेदारी तथाकथित रूप से ऐसा करने वाले आदिवासी अर्थात् सरना वालों पर डाल देते हैं। गोया जो सरना है उसकी यह जिम्मेदारी है कि वे किसी भी लगाए जा रहे आरोप पर मथ्थापच्ची करे और अपने को पाक साफ आदिवासी बताए।
  2. लेकिन ऐसा आरोप लगाने वालों को साफ करना चाहिए कि आदिवासी कैसे हिन्दू बने, किसने उन्हें हिन्दू बनाया ?? हिन्दू बनाने अर्थात् धर्मांतरण करने की क्या क्या प्रक्रिया या पद्धति अपनाई गयी ??
  3. गैर हिन्दू को हिन्दू बनाने के लिए कौन सा धार्मिक कर्मकांड है जिसे आदिवासियों को हिन्दू बनाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है ??
  4. उन्हें धर्मांतरित करने के लिए कौन से मंदिरों या मठों में ले जाकर कौन सा भजन, प्रार्थऩा रटाया जा रहा है और किन किताबों को उन्हें पढ़ने के लिए दी जा रही है ??
  5. धर्मांतरित करने के बाद उनके लिए हिन्दू धर्म के क्या क्या कर्मकांड करना अनिवार्य किया गया और धर्म में पक्का करने के लिए दृढ़िकरण की क्या शर्त रखी गयी ??
  6. हिन्दू बनने के बाद उन्हें क्या क्या लाभ, सुविधा दी गई और क्या सकरात्मक आश्वासन दिए गए ??
  7. क्या उन्हें धर्मांतरित करने के बाद हिन्दू धर्म के पारंपारिक रीति नीति से हिऩ्दू धर्म में आने के लिए स्वागत कार्यक्रम आयोजित किए और उन्हें पापों से मुक्ति या मोक्ष पाने के लिए बधाई दी गई ??
  8. ऐसे धर्मांतरित हिन्दू अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए किन तीर्थ स्थानों में जाते हैं और वे कितने तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं ??
  9. हिन्दू बने आदिवासी ब्राह्मणों को अपने घर में बुला बुला कर कितने हिऩ्दू परब त्यौहारों को उपवास और कर्मकांड के साथ मनाते हैं ??
  10. हिन्दू बनने के बाद क्या उन्हें करम, सरहूल, जतरा आदि में शामिल होने के मना किया गया ??
  11. सरना शादी विवाह में गाये जाने वाले एक दर्जन से अधिक प्रकार के विभिऩ्न नृत्य, गीत, गाजे बाजे, ढाँक, शहनाई, नगाड़े आदि को छोड़ कर हर परब त्यौहार में सिर्फ एक ही प्रकार के नृत्य करने और बाजे बजाने के लिए कहा गया ??
  12. मांदर और नगाड़ों में भूतों का डेरा बसता है बोल कर उसे बजाने से मना किया गया ??
  13. बच्चे के जन्म लेने के बाद नामकरण करने की पद्धति को उन्हें त्यागने के लिए कहा गया ??
  14. शादी के रस्में बुजुर्गों से घर में नहीं बल्कि सिर्फ मंदिर में ब्राह्मण के द्वारा करवाने के लिए मजबूर किया गया ??
  15. आदिवासी शादी में अग्नी के चारों तरफ एण्टी क्लॉकवाइज फेरे लेने के बदले क्लॉकवाइज फेरे लेने के लिए मजबूर किया गया ??
  16. क्या आदिवासी दूल्हा को पैंट शर्ट और टाई लगा कर शादी करने के लिए कहा गया ??
  17. शादी के बाद औरत बहुरत करने की परंपरा को तिलांजली देने के लिए कहा गया ??
  18. बच्चे को दादा नाना के नाम देने की परिपाटी को नकारने के लिए कहा गया ??
  19. उन्हें सिर्फ हिन्दू नाम ऱखने के लिए ही मजबूर किया गया ??
  20. उन्हें गाय, बकरियों की पूजा करने से रोका गया ??
  21. पर्ब, त्यौहारों तथा घरों में विशेष अवसरों पर मुर्गा या कबूतर की बलि देने से रोका गया ??
  22. घर की पूजा में अपने पूर्वजों को नाम से झारा का रस्सी पानी चढ़ाने से मना किया गया ??
  23. गाँव पूजा, सरना पूजा करने से मना किया गया ??
  24. मृतक आत्मा को छाई भीतर करने से मना किया गया ??
  25. उन्हें घर में स्थान देने से मना किया गया ??
  26. डंगरी पूजा करने से मना किया गया ??
  27. करम पूजा में करम डाली के साथ किसी हिन्दू देवी देवता या हिन्दू प्रतीक को सामने रख कर आदिवासी पूजा पद्धति से इत्तर ढंग से करम मनाने के लिए कहा गया ??
  28. क्या आदिवासी मृतक को हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार अंतिम क्रिया करने के लिए कहा गया ??
  29. क्या मृतक को गंगाजल से धो कर क्रिया कर्म करने के लिए कहा गया ??
  30. क्या महिलाओं को शमशान घाट जाने से मना किया गया ??
  31. क्या हिन्दू बने परिवार को ब्राह्मण द्वारा किसी भी हिन्दू बने अन्य समुदाय के परिवार के साथ अपने बेटे बेटियों की शादी करने के लिए कहा गया ??
  32. क्या हिन्दू बने आदिवासी को एससी, ओबीसी और अन्य सामान्य वर्ग के लोगों के साथ वैवाहिक संबंध बनाने के लिए कहा जाता है और उसे प्रोत्साहित करने के लिए दोनों परिवारों को मंदिर में बुला कर शादी भी करवाया जाता हैं ??
  33. क्या हिन्दू पूजारी या ब्राह्मण हिन्दू बने आदिवासी को अपने दूसरे आदिवासी जो हिन्दू नहीं बने हैं से मेलजोल तथा रोटी बेटी का रिश्ता न रखने के लिए मजबूर करते हैं ??
  34. क्या हिन्दू बने आदिवासियों के लिए हिन्दुओं के द्वारा चलाए जा रहे शिक्षण संस्थानों, प्रशिक्षण संस्थानों में पचास प्रतिशत धार्मिक आरक्षण दिया जा रहा है ??
  35. आदिवासियों के हिन्दू धर्म अपनाने के दोष लगाने वाले यह नहीं बताते हैं कि आदिवासी हिन्दू बनने के बाद वर्ण व्यवस्था के कौन से पायदान में भर्ती किए गए ??
  36. हिन्दू धर्म में टोटेम नहीं होते हैं बल्कि 12 ऋषि मुनियों के नामों से चलने वाले गोत्र से हिन्दू बनते हैं तो आदिवासी ऐसे कौन से गोत्र से नवाजे गए ??
  37. ऐसे सैकड़ों सवाल हैं जिसे आरोप लगाने वालों से पूछा जा सकता है और जाहिर है कि आरोप लगाने वालों के ऐसे सवालों से बच कर निकलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यदि वे सबूत और अन्य बातों का विशिष्टीकरण करते हुए विस्तार पूर्वक इसे साबित नहीं करते हैं या नहीं कर सकते हैं तो उनके इस तरह के अनर्गल आरोप को क्या समझा जाए ??
  38. उनके ऐसे आरोप या चिंता को क्या समझा जाए ?? आरोप लगाने वाले का मतलब क्या है ?? आरोपों का उद्देश्य या लक्ष्य क्या है ??
  39. क्या उन्हें आदिवासीयत की बहुत चिंता है और आदिवासीयत की रक्षा करने के लिए प्रयातरत हैं और इसी क्रम में चिंतित होकर वे ऐसी बात करते हैं ?? क्या उन्हें आदिवासी धर्मांतरण से चिंता है ?? यदि वे आदिवासी का हिन्दू धर्म में धर्मांतरण से चिंतित हैं तो क्या उन्हें आदिवासी का ईसाई, मुसलमान में धर्मांतरण से भी उतनी ही मात्रा में चिंता है या इन धर्मों में स्थानांतरण पर उन्हें कोई चिंता नहीं है बल्कि वे इसे अपने पक्ष में हो रहे गतिविधियाँ मानते हैं ??
  40. आदिवासी हिन्दू न बने उसके लिए उन्होंने वास्तविक रूप से समाज के बीच में उतर कर क्या क्या काम किया है और सामाजिक हित में वे क्या सुझाव देना चाहते हैं ??
  41. आदिवासी का हिन्दू धर्मांतरण से यदि उन्हें चिंता है तो क्या वे आदिवासी सरना या प्राकृतिक पूजक बनके चिंता कर रहें हैं या वे खुद किसी अन्य धर्म में धर्मांतरित होकर हिन्दू धर्मांतरण पर चिंता जाहिर कर रहे हैं ??
  42. हिन्दू धर्मांतरण पर उनकी चिंता सचमुच में वाजिब है या वे इन तर्कों को सिर्फ ईसाई और मुसलमान धर्मांतरण के आरोप को बोथरा करने के लिए चुपचाप धर्मांतरण में लगे हुए लोगों को आड देने के लिए ऐसी चिंता जाहिर करते हैं।
  43. क्या वे ईसाई-मुसलमान धर्मांतरण में लगे हुए तत्वों की ओर से मैदान में उतर कर आदिवासी हित के विरूद्ध में अपनी धार्मिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं ??
  44. या वे अपने धर्मांतरण को न्यायोचित ठहराने और सरना की ओर से किए जा रहे किसी तर्क का सिर्फ उत्तर देने के लिए ही हिन्दू धर्मांतरण को तूल देना चाहते हैं ??
  45. यदि धर्मांतरण के कानूनी अधिकार का खुद उपयोग करना चाहते हैं और किए हुए हैं तो वे हिन्दू बन रहे आदिवासियों के कानूनी अधिकार का सम्मान करने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं ??
  46. यदि ईसाई और मुसलमान बनने से आदिवासी बची रह सकती है तो हिन्दू बनने से वह कैसे नष्ट हो जाएगी ??
  47. जो खुद धर्मांतरित है क्या उसे दूसरे के धर्मांतरण पर बोलने का कानूनी या नैतिक हक हासिल है ??
  48. ईसाई आदिवासी बड़े पैमाने पर खुद दूसरे गैर आदिवासियों, विशेष कर ईसाई बने दलितों या एससी समुदाय से वैवाहिक संबंध बना रहे हैं। चर्च भी इन संबंधों को प्रोत्साहित करता है ऐसे में उन्हें यह बोलने का अधिकार कैसे मिल जाता है कि हिन्दू बनने पर आदिवासी क्षुद्र बन जाता है ??
  49. तो क्या धर्मातरण से जाति और समुदाय का भी अंतरण हो जाता है ??
  50. तो क्या मुसलमान बनने से आदिवासी अरब बन जाता है और ईसाई बनने से इटालियन या जर्मन बन जाता है ??
  51. वर्ण व्यवस्था में यदि ब्राह्णवाद सामाजिक शोषण का प्रतीक है तो ईसाई धर्म संगठन में चर्च के पदाधिकारी किसके ऊपर राज्य करते हैं ??
  52. क्या चर्च वर्चस्ववादी अलोकतांत्रिक निरंकुश एकपक्षीय शासन ( का प्रतीक नहीं है ??
  53. चर्च के प्रशासनिक व्यवस्था में शासक (राजा) कौन है और प्रजा कौन है ??
  54. यदि हिंदू धर्म में शोषण, पक्षपात, चालाकी का तंत्र विकसित है तो ईसाई और मुसलमान में वह कौन सी धार्मिक संगठनिक व्यवस्था है जिसमें बिना परिश्रम के ढनाढ्य वाला जीवन मयस्सर करने की सारी व्यवस्थाओं का तामझाम हाजिर हो जाता है ??
  55. क्या ईसाई धर्म के अंदर ही यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था नहीं है जिसकी गुलामी सभी ईसाई करते हैं ??
  56. इन संगठनों के ब्राह्मवादी चरित्र, स्वभाव और व्यवस्था का विरोध करने का क्या इतिहास है ईसायत में ??
  57. क्या चर्च में अजायक वर्ग याजक वर्ग की गुलामी में जीवन नहीं जीते हैं ?? क्या यह क्षुद्र होने का सबूत नहीं है ??
  58. जो खूद याजक गर्व के ब्राह्मणत्व को स्वीकार कर लेता है, उनका दूसरे आदिवासी जो ब्राह्मणवाद को घास भी नहीं डालते हैं को, खुद दूसरे धर्म को अंगीकरण करते हुए क्षुद्र घोषित करना कितना उचित है ??
  59. आदिवासी का हिन्दू बन जाने के सतही आरोप लगाने वाले या तो संगठनिक धर्मों में निहित वर्चस्ववादी-उपनिवेशवादी चरित्र से अनजान होते हैं या फिर वस्तुस्थिति से।
  60. Cross Culturalization, Cultural Hegemoney of powerful society, से अन्जान लोग इस तरह के आधारहीन आरोप लगा कर सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करते हैं। ऐसे लोग इन विषयों के अध्ययन से रहित हैं और सिर्फ छिछले स्तर की जानकारी और सोच से लैस हैं या फिर वे बहुत चालाक हैं और गैर-इच्छित चालाकी से थोपे जा रहे ईसाई धर्मांतरण को न्यायोचित ठहराने के लिए कुतर्क के एक तोड़ के रूप में प्रस्तुत करते हैं । कुतर्क करने के लिए ऐसे  अनर्गल आरोप से सोशल नेटवर्क सहित समाज में भाईयों बहनों के बीच सौहद्रता और भाईचारा बढ़ने के बजाय कटुता की भावना का विकास होता है और दूसरे पक्ष भी इसी तरह के अनर्गल आरोप लेकर हाजिर हो जाते हैं।
  61. ऐसे लोगों को सामाजिक मित्रता, भाईचारा और सौहाद्रता से कोई लेना देना नहीं होता है और ये आदिवासी समाज के अहित में लगातार काम करते रहते हैं। ऐसे लोग आदिवासियों के एक्यबद्ध होने के दीर्धकालिक फायदे से अनजान हैं और सामाजिक समरसता और एकता के लिए नयी दृष्टिकोण दिखाने में असमर्थ होते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि उनके शरारत भरे इस तरह के आरोप प्रत्यारोप से सरना वालों में हिंदू संस्कृतिकरण के फलस्वरूप चल रहे ध्रुवीकरण की प्रक्रिया और भावनाएँ अधिक प्रगाढ़ होती है और त्वरित रूप से गतिशील होकर दिलों की दूरी और बढ़ जाती है।
  62. जो गैर आदिवासी हैं और आदिवासी नाम धारण करके सोशल नेटवर्कों में ध्रुवीकरण को बढ़ाने के लिए ही हाजिर हुए हैं, उनके लक्ष्य को ऐसे आरोप लगाने वाले आदिवासी और अधिक मजबूती प्रदान करते हैं।
  63. यह सच है कि कुछ आदिवासी तन मन और धन से हिन्दू बन गए हैं और वे पूरे होश हवाश और जागरूकता के साथ मंदिरों या मठो में हिन्दू धर्म में पूरे रीति रिवाजों के साथ हिन्दू बने हैं। लेकिन उनकी संख्या ईसाई बने 15 लाख (??) के मुकाबले दस हजार भी नहीं होगा। लेकिन उनके धर्मांतरण की खीझ संस्कृतिकरण के प्रभावों से प्रभावित ऐसे बहुसंख्यक समूह से करना कहाँ तक उचित है जो तन मन धन से सरना या प्राकृतिक पूजक है और सिर्फ हिन्दू धर्म के सांस्कृतिक प्रभावों से मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित है।
  64. यह सत्य है कि सरना वाले कुछ लोग जानबुझ कर सचेत अवस्था में हिन्दू बने हैं लेकिन अनपढ़, भोलेभाले, सरना वालों का जनगणना में हिन्दू लिखाने का मुख्य कारण उनकी सामाजिक और राजनैतिक चेतना और जागरूकता का अभाव है न कि सजग रूप से हिन्दू बन जाने की ललक। जनगणना कलम में सरना का न होना भी एक कारण है और जनगणना करने वालों का गैर आदिवासी होना भी कई कारणों में से एक। लेकिन इस तरह के तकनीकी कमी को लेकर निष्कर्ष निकालना और कुतर्क देने का खामियाजा आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक एकता को उठाना पड़ रहा है।
  65. जो अर्धशिक्षित हैं और अध्ययन रहित हैं उसके चुलबुली और बेवकूफीभरा कुतर्क से समाज को अपूरनीय क्षति हो रही है।
  66. गरबा मुख्यत गुजराती हिंदुओं का त्यौहार है। लेकिन मुंबई में इसमें सभी सम्मिलित होते हैं चाहे वह मुसलमान हो या   क्रिस्चन या अन्य कोई तो क्या गरबा में सम्मिलित होने वाले हिन्दू हो जाते हैं ??
  1. क्रिस्मस में पूरा मुंबई केक खरीदता है और पडोसियों को भी खिलाते हैं। अनेक बडे बडे संस्थानों में क्रिसमस और न्यू ईयर का केक बाँटा जाता है और क्रिसमस के गीत भी बजाए जाते हैं तो क्या वे सारे क्रिस्चन बन जाते हैं। धार्मिक भाईचारा और व्यवहार को उपरी और भीतरी दोनों स्तर पर समझना बहुत जरूरी है।
  2. आज सभी बड़े और छोटे शहर क्रास कल्चराइजेशन का मेलटिंग प्वाइंट बन गए हैं। गाँव भी अछूता नहीं रहे। भारी संख्या में आदिवासी शहरों में अस्थायी रूप से आ जा रहे हैं। जो समाज वैभवशाली होता है वह अपनी संस्कृति का अधिक प्रदर्शन करते हैं। गरीबों का विशेष कर धर्म दर्शनों से अन्जानों को यह सब आकर्षनीय लगता है। दूर्गा पूजा में आदिवासियों का भाग लेना कौतुहल और सांस्कृतिक प्रभाव है न की उनका हिन्दू बन कर ब्राह्मवाद का सचेतनपूर्वक अंगीकरण।
  3. आदिवासी समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण करने की बहुत कोशिशें की जा रहीं हैं। ध्रुवीकरण के नतीजे बहुत डरावने होते हैं। भारत का विभाजन ध्रुवीकरण का ही नतीजा है। देश में दंगा धार्मक भावनाओं पर ही भड़काया जाता है। आदिवासी समाज एक अर्धशिक्षित समाज है। यहाँ लोग गहराई में गए बिना ही एक्सपर्ट बन जाते हैं क्योंकि काना भी अंधों के बीच राजा बन जाता है।
  4. Cross Cultural-ization और Cultural hegemony को समझे बने आदिवासी समाज के मेल्टिंग प्वाइंट साइकोलॉजी को समझना मुश्किल है और उस पर सटीक टिप्पणी करना तो और भी मुश्किल।
  5. आदिवासी इस देश का सबसे प्राचीन निवासी हैं। लेकिन यह पिछले कई हजार सालों से गैर आदिवासी समाजों के सात निरंतर संपर्क में रहा है और एक भौगोलिक ईकाई में रहने के कारण उनके बीच अनवतर सांस्कृतिक आदान प्रदान एक स्वाभाविक प्रक्रिया रही है।
  6. दिनों, माह के नाम पूरे भारत में कमोबेश एक ही है। जन्म के समय नाभी काटने की रीति, शादी विवाह में बरात का गमन और लड़की को शादी के बाद लड़के के लाना आदि सैकड़ों ऐसे सामाजिक आचार व्यवहार, लोक परलोक के परिकल्पना, पहनावा, खानपान, बातचीत, घर, रास्ता, पूल, सब्जी बारी, खेतों मे बुआई, कटाई आदि हजारों चाल व्यवहार और दैनिक दिनचर्या है जो कमोबेश पूरे भारत में एक ही तरह से प्रचलित है और यह एक दूसरे समाजों की सोच विचार और आचार व्यवहार को उसी तरह से प्रभावित किया है जैसे अरब जगत, इजरायल, मिश्र के निवासियों की जीवनचर्या और सोच विचार और जीवन मूल्य ईसाई और मुसलमान को कमोबेश समान रूप से प्रभावित किया है।
  7. ईसाई और मुस्लिम तथा कुछ पश्चिम के लोगों और धर्म का सम्पूर्ण ब्राह्मांड के लिए एक ईश्वर का विश्वास इसी तरह है का एक सांस्कृतिक विश्वास रहा है न कि धार्मिक विश्वास। ईसाई और मुसलमान धर्म एक ही भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने के कारण मृतक को कब्र में एक ही प्रक्रिया से दफनाते हैं। यह ईसाई या मुसलमान धर्म की उत्पति के बाद धार्मिक रूप से अविष्कृत सर्वथा नये कर्मकांड का हिस्सा नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और जीवन दर्शन के आदान प्रदान का हिस्सा है। ईशा के सात हजार वर्ष पूर्व भी पश्चिम के लोगों का विश्वास था कि किसी दिन किसी चमत्कार से मृत शरीर जी उठेगा और यही विश्वास मृत व्यक्ति को दफनाने के लिए ईसाई और मुसलमानों में एक जैसे काम करता है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बने मकबरे, मम्मी, पिरामिड आदि इसी विश्वास का नतीजा है। किसी पैगंबर, नबी या अवतार का भविष्य में जन्म लेने की कथा भी दुनिया के अधिकतर समाजों में पाया जाता है। वास्तव में यह कोई धार्मिक विचार नहीं है, बल्कि पश्चिम के विश्व की सांस्कृतिक आचार व्यवहार है। लेकिन धर्म के संग संग यह आचार व्यवहार विश्व के दूसरे कोनों में भी पहुँच गया। हिन्दू धर्म में कल्कि का अवतार का विचार भी पश्चिम से आने वाले आर्यों का विचार है।
  8. मूर्तिपूजा की निंदा और अपने धार्मिक विश्वास का ऐन केन प्रकारेण दूसरे समाज पर थोपना की जिद्द या धर्मांतरण करने की रीति नीति भी इसी सांस्कृतिक सोच का परिणाम है। मुसलमानों का बकरा, ऊँट आदि का बलिदान या ईसाईयों का चर्च में दाखरस में डुबा कर प्रतीक रोटी जिसे ईसा का शरीर कहा जाता है का बलिदान सांस्कृतिक सोच और दर्शन पर आधारित है न कि किसी नये धार्मिक कर्मकांड पर । चर्च में सिर ढक कर प्रवेश करने वाली महिलाएँ और मुसलमानों में महिलाओं का शरीर ढकने की आदत या मजबूरी आदि सभी सांस्कृतिक प्रभाव ही है। मुसलमान औरतें बुर्के पहनती हैं तो इराक, ईरान, सीरिया और तुर्की में रहने वाले गैर मुसलमान यदजी समुदाय की औरतें भी बुर्के में ही रहती हैं। बुर्का कोई धार्मिक पोशाक नहीं बल्कि सांस्कृतिक पोशाक है। मुसलमान और ईसाईयों के बीच सदियों तक लड़ाईयाँ चली फिर भी दोनों में अनेक सांस्कृतिक समरूपता है।  दूसरे के अनेक सांस्कृतिक प्रभाव से चाह कर भी छूटकारा नहीं पा सकता है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अत्यंत जटिलता लिए होती है। De-cultural-ization करना सहज नहीं होता है।
  1. पश्चिम के समाज जो बाद में मुसलमान और ईसाई कहलाए हमेशा से दूसरों की संस्कृति को नष्ट करके अपनी संस्कृति थोपने के आदी रहे हैं। यूरोप के किसी भाग से आए आर्यों में भी यही चालाकी और आदत थी जिसका उन्होंने हिन्दू धर्म में प्रवेश कराया और दूसरों की संस्कृति और जीवन मूल्यों को घटिया बताते हुए अपनी चालाकी को दूसरों पर थोपा। आर्या संस्कृति की कट्टरपन और पश्चिम एशिया की जातियों का कट्टरपन में अजीब सी समानता है।
  2. पश्चिम के हर समाज ने हर जगह अपनी वर्चस्ववादी धार्मिक विचारधारा, सोच और दर्शन को दूसरे समाजों में या तो चालाकी और धुर्तता के साथ थोपा या तलवार के बल पर।
  3. ईसाई और मुसलमान जीवन दर्शन को भी भारत के गरीबों पर योजनाबद्ध ढंग से थोपा गया। लेकिन पढ लिखे वैज्ञानिक सोच से लैस जागरूक समाज पर इस वर्चस्ववादी धार्मक उपनिवेश का प्रभाव नगण्य रहा है। भारत में मुसलमान और ईसाई बनने के दृष्टांत अशिक्षित समाज में ही मिलते हैं।
  4. यदि आदिवासी समाज धर्मांतरण को हेय दृष्टि से देखता है और उसे अपने समाज में हो रहे दो ध्रुव बनने के लिए जिम्मेदार समझता है और धर्मांतरण से जुडे लोगों के प्रति दुर्भावना रखता है तो उसे समग्र रूप में विश्लेषण करने और उसे दूर करने के लिए खुली चर्चा करने की जरूरत है न कि धर्मांतरण को तर्कसंगत बनाने के लिए नये तर्क गढने की जरूरत है ??
  5. धर्मांतरण यदि बेलगाम हो भी रहा हो तो उसमें आम ईसाईयों की कोई भूमिका नहीं होती है। लेकिन धार्मिक रणनीति से अनजान आम ईसाई युवा भोलेपन के कारण इसमें एक पक्ष बन जाते हैं और चर्च के सिपाही बन जाते हैं।
  6. इसी तरह आरएसएस के कार्यकर्ता या हितसाधक न होते हुए भी सरना युवा अनजाने में उनके सिपाही बन कर अपने ही भाई बहनो से गुथमगुथ्था हो जाते हैं और स्तरहीन गालीनुमा भाषा में एक दूसरे को घायल करते रहते हैं।
  7. थोथे तर्कों से किसी समाज का भला नहीं होने वाला है न ही प्रतिक्रिया स्वरूप हो रहे हिन्दुकरण और हिन्दू बन कर बढ़ रहे ईसाई द्वेष भावना में कोई कमी आएगी। ऐसे विमुढ़ बौद्धिकता से हीन तर्क स्थिति को और जटिल बनाने का कार्य करेगा और हिन्दुत्व के झंडाबरदारों के लक्ष्य पूरे होंगे।
  8. यदि ज्ञात या शोध किए गए इतिहास, ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट और लिखित रूप में उपलब्ध न हो तो किसी भौगोलिक क्षेत्र में सैकड़ों या हजारों सालों में हुए सांस्कृतिक आदान प्रदान के बारे सिर्फ अनुमान ही किया जा सकता है। वर्तमान आचार व्यवहार और नमुनों के आधार पर यह अनुमान लगाना असंभव हो जाता है कि कौन सा स्वरूप मौलिक रूप से प्राचीन काल में किस समाज का था ??
  9. वैदिक साहित्य के अनुसार आर्य सिर्फ अग्नि की पूजा करते थे, और किसी मंदिर की कोई कहानी कहीं नहीं मिलती है। लेकिन आज वैदिक धर्म के अनुयायी मंदिरों को ही अपना मुख्य आराधना स्थल मानते हैं।
  10. वहीं आदिवासी भी इन मंदिरों से कई तरह से जुड़े हुए हैं। पूरी के जगन्नाथ मंदिर सहित सैकड़ों मंदिरों में सबसे पहले आदिवासी पूजारी पूजा करते हैं तब जाकर दूसरे लोग पूजा करते हैं। तो क्या मंदिर आदिवासी कल्चर से ही विकसित हुई है ??
  11. सरना और हिन्दू के बीच गहन शोध के बिना एक स्पष्ट सीमारेखा तय करना या ढूँढना इतना सहज नहीं है न ही कई मामलों में संभव है। लेकिन अनेक मामलों में एक दूसरे के विपरीत मूल्य और दर्शऩ है, जो एक दूसरे को विभाजित करता है। लेकिन दूर से दिखाई देने वाला अंतर भी कई मामलों में उलझे हुए दिखाई देते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आदिवासी हिन्दू का एक भाग है या हिन्दू आदिवासी समाज का दूर का रिश्तेदार।
  12. तथाकथिक कट्टर हिन्दुत्व के झंडा उठाने वाले लोग आदिवासियों के जीवन मूल्यों, खानपान, धार्मिक कर्मकांड आदि विशिष्ट मूल्यों को खत्म करके उन्हें ठेठ रूप से हिन्दू बनाने की कस्में खाएँ हैं और इसके लिए सांस्कृतिकरण की धीमी गति को त्वरित रूप से गतिशील बनाने की खूब कोशिशें जारी है और इसी के तहत आदिवासी गाँवों में मंदिरों का निर्माण, घरों आदि में देवी देवता के फोटो या मुर्ति आदि पहुँचाने के काम को तीव्र गति से किया जा रहा है। हजारों लोग आदिवासी क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक के कर्ताधर्ता बनके कार्य कर रहे हैं। वे आदिवासियों के हिन्दू रीति रिवाजों में ढालने के काम में लगे हुए हैं। इस तरह के काम में ऊँगलियों में गिने जा सकने लायक आदिवासी भी शामिल हैं लेकिन इस तरह के कार्यों में कुल मिला कर गैर आदिवासी ही इसका नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन बृहद आदिवासी समाज जिसे आप सरना समाज भी कह सकते हैं, न ऐसी प्रक्रिया को तहेदिल से स्वागत किया है न ही वह इसके हानिकारक प्रभाव का विश्लेषण किया है। विश्लेषण करने की कोई रीति नीति भी नहीं है और न ही सामाजिक जागरूकता। संगठनिक रूप से कुछ करने की कोई संकेत भी कहीं नहीं है।
  13. हिन्दुत्व वालों का यह क्रिया ईसाई धर्मांतरण का प्रतिक्रिया भी है और इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लक्ष्यों की दूरगामी निहितार्थ भी शामिल है। दोनों के अपने राजनैतिक सोच है और वोटों का ध्रुवीकरण भी उसी अनुरूप होते है ।
  14. पाँचवी अनुसूची के प्रति इन तत्वों की उपेक्षा इसके सोच और विचारधारा के निहितार्थ को सहज बता भी देता है। गैर आदिवासी तो चाहते हैं कि आदिवासियों में ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज हो और सरना और ईसाईयों के बीच न पटने लायक दूरी हमेशा के लिए बन जाए। आदिवासी क्षेत्रों में इतना प्राकृतिक संसाधन बिखरा पड़ा हुआ है कि यह आगामी सौ सालों में भी खत्म नहीं होगा। आदिवासी समाज का कमजोर हुए बिना इसका लाभ दूसरों को सहज में नहीं मिलेगा।
  15. हिन्दू सांस्कृतिकरण का सीधा शिकार सरना समाज जरूर हो रहा है, लेकिन इसका विरोध भी हो रहा है। साथ ही ईसाई धर्मांतरण का भी विरोध हो रहा है, क्योंकि सांस्कृतिकरण और धर्मांतरण अबाध गति से चल रहा है। इसका ज्वाइंट अध्ययन से ही पुष्टि या इंकार किया जा सकता है। लेकिन संसाधनहीन सरना समाज इसका जोरदार प्रतिकार करने में असमर्थ है।
  16. लेकिन सांस्कृतिकरण का शिकार तो ईसाई और मुस्लिम धर्म वाले भी हो रहे है। साड़ी चूडीदार पहनना, मांग में सिंदूर, हाथों में चुडी, शादी की रस्में, बारात लेकर दुल्हन लाना आदि तो ईसाई भी हिन्दुओं की तरह की करते हैं, तो क्या ईसाई हिन्दू बन गए हैं ??
  17. तमाम हिन्दी या संस्कृत नाम कमोबेश भारतीय या हिन्दू नाम ही है। भाषा संस्कृति और खानपान, पहनावा, स्टाइलें सब एक ही तरह के हैं तो हिन्दू नाम, संस्कृति, खानपान, पहनावा वाले ईसाई हिन्दू नहीं बन गए हैं ??
  18. सरना वालों को हिन्दू बनने के आरोप लगाने वालों को पहले एक भौगोलिक विशेष क्षेत्र में होने वाले सांस्कृतिकरण की प्रक्रिया का अध्ययन करना चाहिए। अध्ययन रहित लोग सटीक टीका टिप्पणी करने में असमर्थ होते हैं।
  19. हिन्दू परब त्यौहोरों या कर्मकांडों में आदिवासियों के शरीक होने के कारणों और कारकों पर भी गहराई से नजर डालने की जरूरत है। वैचारिक और मूल्यों के रेखांकन की शून्यता और विकल्पहीनता के कारण आदिवासी हिन्दू परब त्यौहारों में शरीक होते हैं लेकिन यह शरीकी किसी आध्यात्मिकता के कारण नहीं होकर सिर्फ उत्सव के मौज मस्ती के लिए अधिक होता है। लेकिन इस शरीकी को ईसाई या मुसलमान धर्मांतरण से किसी भी तरह से तुलना नहीं की जा सकती हैं, वे विधिपूर्वक कार्यक्रमबद्ध कर्मकांड होता है और धर्मांतरण के लिए उनके धार्मिक किताबों में इसकी व्याख्या दी गई है।
  20. धर्मांतरण के बाद व्यक्ति की लौकिक और परलौकिक विश्वास, मूल्य और जीवन दर्शन में न सिर्फ मौलिक और मूलभूत परिवर्तन होता है बल्कि जीवनचर्या, परब त्यौहार, दान दक्षिणा, और सामाजिक आचार विचार और सामाजिक समन्वय तथा मेलजोल में भी परिवर्तन होता है। इस तरह के परिवर्तन से ही सामाजिक ध्रवीकरण की प्रक्रिया तेज होती है और कालांतर में समाज खण्ड खण्ड हो जाता है।
  21. जहाँ एक ओर सरना आदिवासियों के उपर बेसिर पैर की विचारहीन आरोप लगाए जाते हैं वहीं आदिवासी ईसाईयों पर भी सरना या हिन्दुत्व के झंडाबरदारों द्वारा विदेशी और सांस्कृतिकहीन होने के अनर्गल आरोप लगाए जाते हैं।
  22. यदि किसी तरह के वास्तविक हालातों, समस्याओं पर गंभीर चर्चा करने की जरूरत हो तो उस पर विस्तार पूर्वक बिन्दुवार सकरात्मक ढंग से बात की जानी चाहिए न कि निंदात्मक रूप से। छिछरोपन चर्चा से आदिवासी समाज की सांस्कृतिक बौद्धिकता में कोई ईजाफा नहीं होगा न ही समस्या का समाधान मिलेगा। समाधान की चाह रखे बिना तनावपूर्ण भाषा में झगडालूपन का प्रदर्शन तो किया जा सकता है, लेकिन सामाजिक नेतृत्व के गुणों का नहीं। वास्तव में ऐसे करने वाले सरना और वास्तविक रूप से हिन्दू बने आदिवासी बृह्द आदिवासी समाज के भविष्य के पेड को तना से काटने का काम कर रहे हैं और अपनी बेवकूफी में अपने भविष्य को बर्बाद कर रहे हैं।
  23. सामाजिके एकता को बनाए रख कर सभी समस्यओं पर गंभीरता पूर्वक बुद्धिमता से बहस करने की जरूरत है न कि एक दूसरे को नीचा दिखाकर कुतर्क करने की। जो भी व्यक्ति इस तरह की बेवकूफी करता है और सामाजिक तानाबाना को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है उसे चिन्हित करके सामाजिक रूप से अलग थलग करने की जरूरत है।
  24. समस्या यदि कहीं है तो उसका कुछ समाधान भी जरूर होगा। यदि कोई समाधान के साथ तर्क के लिए प्रस्तुत नहीं है और बचकने ढंग से बातें करता हो तो समझिए वह सामाजिक नेता नहीं, बल्कि असामाजिक शक्तियों से परिपूर्ण है और उससे किनारा करने की जरूरत है।

1 comment:

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